भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है जिसमें भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) से आग्रह किया गया है कि वह अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए नवीनतम आरोपों की जांच में तेजी लाए और उसे पूरा करे। अधिवक्ता और याचिकाकर्ता विशाल तिवारी द्वारा प्रस्तुत जनहित याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा रिपोर्ट की गई सेबी अध्यक्ष माधबी पुरी बुच से जुड़े हितों के टकराव के हालिया दावों का हवाला दिया गया है।
हिंडनबर्ग रिसर्च ने शनिवार (10 अगस्त) को आरोप लगाया कि सेबी की अध्यक्ष माधवी पुरी बुच और उनके पति ने बरमूडा और मॉरीशस में अस्पष्ट ऑफशोर फंडों में अघोषित निवेश किया था, वही संस्थाएं जिनका कथित तौर पर विनोद अडानी – समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी के बड़े भाई – द्वारा फंडों को राउंड-ट्रिप करने और स्टॉक की कीमतों को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
बुच और उनके पति ने एक बयान जारी कर हिंडनबर्ग के नवीनतम हमले को सेबी की विश्वसनीयता पर हमला और “चरित्र हनन” का प्रयास बताया।
तिवारी ने पीटीआई न्यूज को बताया, “सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सेबी को तीन महीने के भीतर जांच करने का निर्देश दिया गया था और ये निर्देश 3 जनवरी, 2024 को जारी किए गए थे, लेकिन अब तक सेबी ने कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं रखा है। हिंडनबर्ग ने फिर से सेबी प्रमुख के खिलाफ हितों के टकराव के आरोप लगाए हैं।”
तिवारी ने कहा कि हिंडनबर्ग रिसर्च के नए आरोपों ने जनता और निवेशकों के संदेह को और बढ़ा दिया है, जिससे चल रही जांच की पारदर्शिता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। याचिका में सेबी से अपनी जांच को अंतिम रूप देने और निवेशकों और आम जनता के बीच विश्वास बहाल करने के लिए परिणामों को सार्वजनिक रूप से प्रकट करने की मांग की गई है।
तिवारी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग यह सुनिश्चित करने के लिए की जा रही है कि सेबी अपनी जांच की समयसीमा का पालन करे और अडानी समूह से जुड़ी बढ़ती चिंताओं का समाधान करे।
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