यहां सीआईआई के एक कार्यक्रम में बोलते हुए, 2018 से 2021 तक सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमण्यम ने कहा कि 2016 से मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ने देश को मूल्य वृद्धि की औसत दर को 5% तक लाने में मदद की है।
उन्होंने कहा कि 2016 से पहले मुद्रास्फीति की औसत दर 7.5% थी।
अर्थशास्त्री ने कहा कि आठ प्रतिशत की वास्तविक वृद्धि के साथ, 5% मुद्रास्फीति दर के साथ नाममात्र वृद्धि 13% रहने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा, “दीर्घकाल में डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा का मूल्यह्रास दर 1% से कम रहने से अर्थव्यवस्था की बुनियादी बातें सामने आने लगेंगी।”
इस संदर्भ में सुब्रमण्यन ने कहा कि डॉलर के लिहाज से भारत की वास्तविक विकास दर 12 फीसदी होगी। उनके मुताबिक, तब अर्थव्यवस्था का आकार हर छह साल में दोगुना हो जाएगा।
उन्होंने कहा, ‘‘अर्थव्यवस्था का वर्तमान आकार 3.8 ट्रिलियन डॉलर है और 2047 में इसका संभावित आकार 55 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।’’
सुब्रमण्यन ने कहा कि भारत के लिए वास्तविक रूप से 8% की दर से विकास करना संभव है।
उनके अनुसार, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में निवेश संतृप्त हो चुका है, जहां उत्पादकता में सुधार ही विकास का एकमात्र स्रोत होगा।
देश की 8% की वृद्धि दर का दूसरा कारण अर्थव्यवस्था का अधिक औपचारिकीकरण है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था का आधा से दो तिहाई हिस्सा अभी भी अनौपचारिक क्षेत्र में है।
सुब्रमण्यन ने कहा, “अर्थव्यवस्था के अधिक औपचारिकीकरण से उत्पादकता बढ़ेगी। लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धियों की तुलना में भारतीय औपचारिक क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने की अभी भी गुंजाइश है।”
उन्होंने कहा कि उद्यमिता, नवाचार और निजी ऋण सृजन अन्य तीन प्रमुख स्तंभ हैं जो अर्थव्यवस्था को वास्तविक रूप से 8% की दर से बढ़ने में मदद करेंगे।
सुब्रमण्यन, जो 2020-2021 के कोविड वर्षों के दौरान अर्थव्यवस्था के प्रमुख वास्तुकार थे, ने कहा कि महामारी के प्रति देश की प्रतिक्रिया बाकी दुनिया से अलग थी।
उन्होंने कहा, “चूंकि भारत की मुद्रास्फीति उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के ऐतिहासिक औसत से कम थी, इसलिए भारत सरकार दृढ़ विश्वास के साथ आर्थिक नीतियां बनाने में सक्षम थी, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए।”