उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें राज्य सरकार से कहा गया था कि वह 2005 में मुंद्रा बंदरगाह के पास अडानी समूह की कंपनी को दी गई लगभग 108 हेक्टेयर चरागाह भूमि को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी करे।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड (एपीएसईजेड) की अपील पर गौर किया कि न्याय के हित में उक्त आदेश पर रोक लगाना आवश्यक है।
पीठ ने कहा, “नोटिस जारी किया जाए। विवादित आदेश पर रोक लगाई जाए।”
- यह भी पढ़ें: बीएसई सेंसेक्स पर विप्रो की जगह अडानी पोर्ट्स के शेयर ने ली जगह
5 जुलाई को राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि वह लगभग 108 हेक्टेयर गौचर भूमि वापस लेगी, जो 2005 में अडानी समूह की इकाई को दी गई थी।
उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि, “गुजरात राज्य के राजस्व विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के हलफनामे पर गौर करते हुए, हम संबंधित प्राधिकारी/अधिकारियों से कानून के अनुसार बहाली की प्रक्रिया पूरी करने की अपेक्षा करते हैं।” तथा मामले की अगली सुनवाई 26 जुलाई को तय की थी।
कच्छ जिले के नवीनल गांव के निवासियों ने अडानी कंपनी को 231 एकड़ गौचर भूमि आवंटित करने के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी।
यद्यपि राज्य राजस्व विभाग ने 2005 में आवंटन कर दिया था, लेकिन ग्रामीणों को इसके बारे में 2010 में पता चला जब एपीएसईजेड ने उसे मिली ‘गौचर’ भूमि पर बाड़ लगाना शुरू किया।
स्थानीय निवासियों के अनुसार, एपीएसईजेड को 276 एकड़ में से 231 एकड़ भूमि आवंटित करने के बाद गांव में केवल 45 एकड़ चारागाह भूमि ही बची है।
- यह भी पढ़ें: लाल सागर संकट के बीच समुद्री माल ढुलाई दरें रिकॉर्ड उच्च
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह कदम अवैध है क्योंकि गांव में पहले से ही चरागाह की कमी है। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि यह भूमि सामुदायिक संसाधन है।
वर्ष 2014 में उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका का निपटारा कर दिया था, जब राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि उप-कलेक्टर ने चरागाह के लिए 387 हेक्टेयर अतिरिक्त सरकारी भूमि देने का आदेश पारित किया था।
हालांकि, जब ऐसा नहीं हुआ तो उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की गई।
2015 में राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में एक समीक्षा याचिका दायर की जिसमें तर्क दिया गया कि पंचायत को आवंटन के लिए उपलब्ध भूमि केवल 17 हेक्टेयर है।
इसके बाद राज्य सरकार ने शेष भूमि लगभग सात किलोमीटर दूर आवंटित करने का प्रस्ताव रखा, जो ग्रामीणों को स्वीकार्य नहीं था, क्योंकि उनका कहना था कि मवेशियों के लिए इतनी लंबी दूरी तय करना संभव नहीं है।
अप्रैल 2024 में एक खंडपीठ ने राजस्व विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को समाधान निकालने का निर्देश दिया था।
5 जुलाई को अतिरिक्त मुख्य सचिव ने एक हलफनामे के माध्यम से पीठ को सूचित किया कि राज्य सरकार ने लगभग 108 हेक्टेयर या 266 एकड़ ‘गौचर’ भूमि वापस लेने का फैसला किया है, जो पहले एपीएसईजेड को आवंटित की गई थी।
राजस्व विभाग ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार 129 हेक्टेयर भूमि को ‘गौचर’ के रूप में “पुनः प्राप्त” करेगी और इसे गांव को वापस देगी, जिसके लिए वह अपनी कुछ भूमि का उपयोग करेगी और अडानी समूह की कंपनी से वापस ली जा रही 108 हेक्टेयर भूमि का उपयोग करेगी।